काशी ने देश के लिए रक्तदान कर कारगिल के शहीदों को नमन किया

वाराणसी। कारगिल विजय दिवस की याद में मंगलवार 26 जुलाई  को काशी ने अपना लहू देकर शहीद जवानों को नमन किया और इसका साक्षी बना काशी हिंदू विश्वविद्यालय। महामना की इस तपस्थली में उत्साही युवाओं ने पूरे जोशोखरोश से अपनी भागीदारी दर्ज कराई। एनसीसी के कैडेट्स रहे हों या एनएसएस के स्वयंसेवक, सबने देश के लिए महादान किया। बीएचयू के छात्र-छात्राओं के साथ ही, शहर और ग्रामीण क्षेत्रों से भी लोग शहीदों के सम्मान में रक्तदान करने यहां पहुंचे।

अमर उजाला फाउंडेशन और बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल ब्लड बैंक के सहयोग से कारगिल विजय दिवस पर आयोजित स्वैच्छिक रक्तदान शिविर ने मंगलवार को एक अलग ही कीर्तिमान स्थापित किया। अस्पताल के डॉक्टर्स लाउंज में सुबह से ही महादानियों की लाइन लग गई। एनएसएस बीएचयू के स्वयंसेवक और एनसीसी के कैडेट्स के अलावा महिला महाविद्यालय से लेकर कृषि विज्ञान संस्थान तक के छात्र-छात्राओं ने पूरे उत्साह से अपनी भागीदारी दर्ज कराई। यह शहीदों के प्रति अगाध प्रेम और सम्मान ही था कि दूरदराज के ग्रामीण इलाकों से भी लोग पहुंचे और महादान किया। न उम्र की फिक्र और न बीमारी की। कई को उम्र अधिक होने की वजह से रोक लिया गया तो कुछ को बीमारी की वजह से। कई एनेमिक निकल गए। ऐसे में उनके चेहरे पर मायूसी भी छाई लेकिन उनकी भावनाएं सम्मान करने लायक थीं।

जागरूकता की मिसाल बना हरियाणा

बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल ब्लड बैंक के प्रोफेसर इंचार्ज प्रो. केके गुप्ता ने कहा कि रक्तदान के प्रति जागरूकता की मिसाल जो हरियाणा पेश कर रहा है, उससे बेहतर कुछ और नहीं हो सकता। उन्होंने बताया कि हरियाणा में आज भी शादी के दौरान वधु और वर पक्ष के बीच ये होड़ रहती है कि किसका पक्ष सबसे ज्यादा रक्तदान कर रहा है। देशवासियों को इससे प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए। स्वैच्छिक रक्तदान और ऐसे अभियानों से काफी मदद मिलती है। स्पष्ट किया कि यह भ्रम है कि रक्तदान से कमजोरी होती है। हमें ये सोच बदलनी होगी। समाज के प्रति हमारी कुछ जिम्मेदारी है, रक्तदान कर हम समाज के प्रति उसे अदा कर सकते हैं।

इंसान की पहचान खून से हो, धर्म से नहीं

बीएचयू ब्लड बैंक के इंचार्ज डॉ. एसके सिंह ने कहा कि इंसान की पहचान जाति धर्म से नहीं बल्कि खून से होनी चाहिए। इंसान का ब्लड ग्रुप उसकी पहचान होनी चाहिए। कहा कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय में 35 हजार छात्र-छात्राएं हैं। हमारी कोशिश है कि हम इन सभी छात्र-छात्राओं का डाटा बैंक तैयार करें। इसके लिए हमारा प्रयास चल रहा है। यह डाटा बैंक उनके ब्लड ग्रुप के आधार पर होगा। रक्तदान के बाद 35 दिनों के अंदर उसका इस्तेमाल करने की मजबूरी होती है। किसी ब्लड बैंक में खून प्रीजर्व किया जाए, इससे अच्छा है कि हमारे पास ये डाटा बैंक हो। जब जरूरत हो हम इस डाटा बैंक से जरूरतमंदों की मदद कर सकें।

शहीदों के सम्मान में रक्तदान कर एक अलग ही अनुभूति हुई। देश के लिए मर मिटने वालों के लिए हम जो कुछ भी कर सकें, वो कम है। फिर भी पहली बार रक्तदान कर बहुत खुशी मिली। – मनीषा कुमारी, पीओ कैडेट

रक्तदान कर अच्छा लगा। यह भी एक तरह की देश सेवा ही है। बार्डर पर लड़ते हुए घायल होने वाले जवानों को भी खून की जरूरत पड़ती रहती है। हो सकता है कि हमारा यह लहू उनके काम आ जाए। – वरुणा मिश्रा, लीडिंग कैडेट

मैंने यहां दूसरी बार रक्तदान किया। रक्तदान करके अच्छा लगता है। एक अलग ही फीलिंग आती है और आज तो अपने शहीदों की याद में रक्तदान करने का मौका मिला, इससे बड़ी बात क्या हो सकती है। – सौम्या पांडेय, कैडेट

रक्तदान किसी भी दान से बढ़कर है। मैंने आज पहली बार रक्तदान किया। जो सुख और संतुष्टि मिली उसे शायद बयां नहीं कर सकता। मेरा ये लहू शहीदों के नाम है। – अमित सिंह, लीडिंग कैडेट

देश की सेवा में हम युवा जितना योगदान कर सकें वो कम है। रक्तदान के जरिए देश सेवा की जो सुखद अनुभूति हुई, वह बयां नहीं कर सकता। मेरी कोशिश होगी कि मैं हमेशा रक्तदान करूं। – सुनील यादव, एनसीसी कैडेट

 

समाजसेवा ही नहीं राष्ट्रसेवा भी है रक्तदान

वाराणसी । रक्तदान समाज सेवा ही नहीं राष्ट्र सेवा भी है। एक यूनिट ब्लड किसी की जान बचाने के लिए काफी है। इसीलिए रक्तदान को महादान कहा जाता है। यह कहना है एनसीसी ग्रुप ए के ग्रुप कमांडर एके गोयल का। गोयल यहां अमर उजाला फाउंडेशन एवं सर सुंदरलाल अस्पताल , बीएचयू के संयुक्त प्रयास से बीएचयू ब्लड बैंक में आयोजित स्वैच्छिक रक्त दान शिविर में शामिल हुए। उन्होंने खुद रक्तदान करने के साथ ही वहां मौजूद एनसीसी की तीनों विंग (आर्मी, नेवल व एयर) के कैडेट्स को इसके लिए प्रेरित किया। कहा कि कारगिल के शहीदों को याद करने का इससे बेहतर तरीका कोई और नहीं हो सकता। देश की आन पर मर मिटने वालों को यह सच्ची श्रद्धांजलि है। कहा कि देश सेवा के प्रति युवा पीढ़ी में रुझान बढ़ा है। खासकर लड़कियां बड़ी संख्या में सेना से जुड़ रही हैं।

रक्तदान कर औरों को प्रेरित कर गए दिव्यांग अरुण

ये शहीदों के प्रति अरुण का सम्मान और प्रेम ही था कि दिव्यांग होने के बावजूद चोलापुर से अकेले ही महादान करने बीएचयू अस्पताल पहुंचे। 28 साल के अरुण ने पहली बार रक्तदान किया और दूसरों को भी प्रेरित कर गए। बचपन से दिव्यांग अरुण बीटेक कर रहे हैं।

पहले घबराए मगर फिर मुस्कुराए

वाराणसी। अमर उजाला फाउंडेशन की ओर से आयोजित रक्तदान शिविर में कई लोग ऐसे थे, जिनके लिए रक्तदान का यह पहला मौका था। शुरुआत में थोड़ी घबराहट थी लेकिन रक्तदान करते लोगों के उत्साह को देखकर उन्हें हौसला मिला और फिर रक्तदान कर वह भी महादानी बन गए। रक्तदान के बाद ऐसे लोगों की खुशी देखते बनी।

जो सैनिक हमारी रक्षा के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने में तनिक संकोच नहीं करते, उनकी याद में क्या हम रक्तदान तक नही कर सकते? बस इसी प्रेरणा से यहां आया हूं। – आशुतोष पांडेय, बीएचयू

पहली बार ब्लड डोनेट कर रही हूं। अगर हमारे इस प्रयास से किसी की जान बच सकती है तो भला इससे अच्छी बात हमारे लिए क्या हो सकती है। -शिवानी गुप्ता, एमजी काशी विद्यापीठ

रक्तदान शिविर में आने के बाद पहले थोड़ी घबराई थी लेकिन जब यहां लोगों को खुशी-खुशी रक्तदान करते देखा तो हौसला मिला और मैं भी रक्तदाता बन गई। मैं बहुत खुश हूं। – श्रावणी, बीएचयू

पहली बार रक्तदान करके बहुत अच्छा लग रहा है। सभी को रक्तदान करना चाहिए ताकि जरूरतमंदों की जान बचाई जा सके। मैं भविष्य में भी रक्तदान करता रहूंगा। - चंद्रजीत, बीएचयू

रक्तदान शिविर में महादानियों का उत्साह बढ़ाने रेड एफएम 93.5 की पूरी टीम पहुंची। इस दौरान आरजे विशाल, अभिषेक मिश्रा, अलका शर्मा आदि ने एनसीसी कैडेटों और अन्य महादानियों से बातचीत की और उनके देश सेवा के इस जज्बे को सराहा। हौसला अफजाई करते हुए उन्होंने कहा कि कारगिल के शहीदों को यह सच्ची श्रद्धांजलि है।